Bhima Koregaon एक वीरगाथा: हर साल 1 जनवरी को लाखों बौद्ध और अन्य जाति के बाबा साहब के अनुयायी और उन्हे मानने वाले लोग Bhima Koregaon में विजय स्तंभ को वंदन करने के लिये देशभर से आते है। ये लोग Bhima Koregaon भीमा कोरेगाव की लड़ाई में शहीद और घायल महार सैनिकों के सम्मान में यहां विजय स्तंभ पर श्रद्धांजलि अर्पित करने आते हैं।
डॉ. बाबा साहब अंबेडकर ने यहा आकर इन शहीद विरों को श्रद्धांजलि अर्पित की थी। तबसे हर साल लोग यहां आकर उन्हे श्रद्धांजलि अर्पित करते है। पिछले कुछ सालो में यहां भीमा कोरेगांव आनेवाले लोगोें की संख्या बहुत बढ गयी है। इस वर्ष भीमा कोरेगांव शौर्य दिवस का 206 वां वर्ष है।
Bhima Koregaon भीमा कोरेगाव कहां है?
महाराष्ट्र राज्य के पुणे जिले में भीमा नदी के किनारे पर भीमा कोरेगांव यह गांव है। भीमा कोरेगांव गांव कोरेगांव भीमा के नाम से भी जाना जाता है। ज्यादातर लोग इसे कोरेगांव भीमा इस नाम से कहते हैं। भीमा नदी के तीर पर होने के कारण इसका नाम भीमा कोरेगांव रखा है। विजय स्तंभ की यह जगह पुणे से 20 किलोमीटर दूरी पर है।
भीमा कोरेगांव की लड़ाई
महाराष्ट्र राज्य के पुणे जिले के कोरेगांव भीमा गांव में भीमा नदी के तट पर ये लड़ाई लड़ी गई थी। यह एक ऐतिहासिक लड़ाई मानी जाती है। यह युद्ध 1 जनवरी 1818 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और पेशवा गुट के बीच हुई थी। ब्रिटिश सैनिकों में ‘बॉम्बे नेटिव लाइट इन्फैंट्री‘ के लगभग 500 महार, कुछ यूरोपीय और अन्य लोग शामिल थे। पेशावो की ओर से द्वितीय बाजीराव पेशवा के नेतृत्व में 28,000 सैनिक थे।
![Bhima Koregaon](https://i0.wp.com/chhotikhabar.com/wp-content/uploads/2023/12/bK-e1703958698836.jpg?resize=343%2C502&ssl=1)
ब्रिटिश सैनिको के ओर से ‘बॉम्बे नेटिव लाइट इन्फैंट्री‘ के लगभग 500 महार सैनिक लगभग 12 घंटे तक लड़ते रहे। इसमे उन्होंने पेशवोंके सैनिकों को हरा दिया था। अन्ग्रेजोने ये लड़ाई इन महार सैनिकोके शौर्य के कारण जीत ली थी। कोरेगांव भीमा की इस लड़ाई के बाद, अंग्रेजों ने सैनिकों की याद में भीमा नदी के तट पर 75 फीट उंचा विजय स्तंभ बनवाया है और उस पर 20 शहीद और 3 घायल महार सैनिकों के नाम लिखे है। जो इन विरों की वीर गाथा की साक्ष आज भी देते है।
महार सैनिको का उद्देश्य पेशवाई को नष्ट करना था
पेशवा काल के दौरान अस्पृश्यता व्यापक रूप से प्रचलित थी। पेशवाओं के समय में अछूतों पर अत्याचार अपने चरम पर पहुँच गये थे। अछूतों को अपने पैरों के निशान को छिपाने के लिए अपनी कमर मे झाड़ू लगाने और अपने थूक को जमीन पर गिरने से रोकने के लिए अपनी गर्दन में बर्तन बांधने के लिए मजबूर किया गया था। उस समय महारों के साथ बहुत हीन व्यवहार किया जाता था। जिसके विरोध में महार सैनिकों ने ब्रिटिश पक्ष में पेशवाओं के खिलाफ आपने आत्मसम्मान के लिए ये लड़ाई लड़ी और जीत हासिल की थी।
पेशवाई नष्ट करने के उद्देश्य 1 जनवरी 1818 में पुणे से 20 किलोमीटर दूर पर भीमा नदी के तट पर ए लड़ाई हुई थी। इस लड़ाई में महार सैनिकों का उद्देश्य थोड़ा अलग था। यह लड़ाई अंग्रेजों और पेशवाओ के बीच लड़ी गई थी। मगर महार समुदाय के इस सैनिकों ने पेशवाओं ने जो उनके साथ जो व्यवहार किया था उनका बदला लेने के लिए अंग्रेजों के साथ मिलकर यह लड़ाई लड़ी थी। भारत में ब्रिटिश साम्राज्य का विस्तार करने के लिए नहीं बल्कि अत्याचारी पेशवाओं को नष्ट करने के लिए वह बड़ी संख्या में ब्रिटिश सेवा में शामिल हुए थे।
पेशावो की कुल संख्या हजारों में थी और महार सैनिकों की संख्या 500 के करीब थी यानी कि इन सैनिकों के मुकाबले 40 गुना अधिक सीपाही पेशवाओं के पास थे। फिर भी Bhima Koregaon कि ये लड़ाई अंग्रेजों ने जीत ली थी। महार सैनिकों ने अपने अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाने के लिए इसमें आपनी पूरी हिम्मत लगाकर ये जीत हासिल की थी।
अछूत समझी जाने वाले इस जाति को अंग्रेजों ने अपने सैन्य में शामिल कर दिया। उनके मन में पेशवो के खिलाफ जो गुस्सा था इसका इस्तेमाल इस लड़ाई में किया था। इसमें कुछ सैनिकों ने अपना बलिदान दिया था उन सब की याद में Bhima Koregaon गांव में यह विजय स्तंभ बनवाया है।