6 दिसंबर डॉ बाबासाहेब आंबेडकर महापरिनिर्वाण दिवस

भारतीय संविधान के निर्माता डॉ बाबासाहेब आंबेडकर भारत के एक महान व्यक्ति है। भारत के विकास में उनका बहुत बड़ा योगदान है। डॉ बाबासाहेब अंबेडकर जी का देहांत 6 दिसंबर 1956 को हुआ था। इसलिए 6 दिसंबर डॉ बाबासाहेब अंबेडकर महापरिनिर्वाण दिवस कहा जाता है। डॉ बाबासाहेब अंबेडकर जी पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार मुंबई के दादर चौपाटी में किया था। इस इस जगह को चैत्य भूमि के नाम से जाना जाता है।

बाबा साहब जी के लाखों अनुयाई हर साल 6 दिसंबर डॉ बाबासाहेब अंबेडकर महापरिनिर्वाण दिवस पर उन्हें अभिवादन, श्रद्धांजलि देने के लिए पूरे जग भर से चैत्य भूमी दादर, मुंबई में आ जाते हैं। वहां जाकर शांतिपूर्ण भाव से उन्हें अभिवादन करते हैं। जो लोग चैत्य भूमि पर नहीं जा सकते वो लोग अपने गांव, जिला जहां हो सके वहां  उन्हे याद करते हैं, अभिवादन करते हैं। उनके विचारों को याद करते हैं। पूरे देश से लोग उन्हें अभिवादन करते हैं।

महापरिनिर्वाण अर्थ क्या है?

डॉ बाबासाहेब अंबेडकर जी ने करीब 20 से 21 साल अलग अलग धर्मों का अध्ययन किया। पूरी तरहसे समझकर उन्होंने तथागत गौतम बुद्ध के बौद्ध धर्म का चयन किया।

उन्होंने 14 अक्टूबर 1956 को बौद्ध धर्म का स्वीकार आपने लाखो लोगोंके साथ किया था। उन्होंने बौद्ध धर्म की दीक्षा नागपुर में ली थी। उसे जगह को दीक्षा भूमि कहते है।

बौद्ध धर्म के अनुसार कोई व्यक्ति जिसने अपने जीवन काल में और मृत्यु के बाद निर्वाण या स्वतंत्रता प्राप्त कर ली हो, उसे परिनिर्वाण कहा जाता है। यानी के परिनिर्वाण का अर्थ है मृत्यु के बाद मुक्ति अथवा मोक्ष प्राप्त होना। निर्वाण प्राप्त करने वाला व्यक्ति सांसारिक मोह माया, इच्छा और जीवन के दुखों से मुक्त रहता है। साथ ही वह जीवन चक्र से मुक्त रहता है। इसलिए डॉक्टर बाबासाहेब अंबेडकर जी की पुण्यतिथि को महापरिनिर्वाण दिवस कहा जाता है।

डॉ बाबासाहेब अंबेडकर जी का मृत्यु 6 दिसंबर 1956 को दिल्ली में हुआ था। उसके बाद उनके पार्थिव को मुंबई में लाया गया। और दादर के सागर किनारे पर उनका अंतिम विधि बौद्ध धर्म के अनुसार किया गया। इस दादर चौपाटी को चैत्य भूमि कहा जाता है।

आमतौर पर किसी व्यक्ति के मृत्यु के दिन को पुण्यतिथि कहा जाता है। मगर डॉ बाबासाहेब अंबेडकर की मृत्यु के दिन को महापरिनिर्वाण कहा जाता है। इसलिए  6 दिसंबर डॉ बाबासाहेब अंबेडकर महापरिनिर्वाण दिन होता है।

6 दिसंबर डॉ बाबासाहेब अंबेडकर महापरिनिर्वाण दिवस पर क्या करते है?

महापरिनिर्वाण दिवस बहुजनों के जीवन का अत्यंत दुखद देना है। इस दिन डॉक्टर बाबासाहेब अंबेडकर जी का देहांत हुआ था। डॉ बाबासाहेब अंबेडकर का अंतिम विधि दादर के चौपाटी पर जिस जगह किया था उस जगह को चैत्र भूमि कहते हैं। 6 दिसंबर के दिन उनके सारे अनुयाई चैत्य भूमि पर उन्हें अभिवादन करने के लिए आ जाते हैं।

वहां जाकर मोमबत्ती जलाकर उन्हें अभिवादन करते हैं। उनके नाम का जय घोष करते है। बहुत ही अनुशासित तरीके से वह बड़ी संख्या में एकत्र होकर डॉ बाबासाहेब अंबेडकर को अभिवादन करते हैं।

चैत्य भूमि से वापस घर जाते वक्त एक नई ऊर्जा लेकर वह अपने घर जाते हैं। इसके अलावा वहां पर मिलने वाली अच्छी-अच्छी किताबें और उनके विचार लेकर अपने घर जाते हैं।

डॉ बाबासाहेब आंबेडकर

डॉ बाबासाहेब अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 में महू गांव में हुआ था। उनके पिताजी का नाम रामजी था। उनके माता जी का नाम भीमाबाई था। उनके पत्नी का नाम रमाबाई था।

उनका जन्म मध्य प्रदेश के महू गांव में हुआ मगर उनका गांव रत्नागिरी जिले में आंबवड़े नाम गांव था। उनके पिताजी रामजी अंबेडकर सूबेदार थे वह नौकरी के कारण वहां रहते थे। उनका जन्म महाराष्ट्र राज्य में अछूत मानी जाने वाली एक जाति में हुआ था। इसके कारण उन्होंने अपने जीवन में बहुत कठिनाइयों का सामना किया था। उन्होंने स्कूल में क्लास के बाहर बैठकर अपनी पढ़ाई की।

उनकी पढ़ाई में उन्हें बड़ौदा के राजे सयाजीराव गायकवाड और कोल्हापुर संस्थान के राजश्री शाहू महाराज इन्होंने मदद की थी। अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने कोई नौकरी करने की वजह अपने लोगों को उनका हक देने के लिए अपना पूरा जीवन लगा दिया।

बाबा साहब को पढ़ने का बहुत शौक था। किताबों के लिए उन्होंने घर बनाया था। किताबों के लिए घर बनाने वाले और पहले व्यक्ति थे। बाबा साहब अंबेडकर 18 घंटे पढ़ाई करते थे। उन्होंने कई विषयों पर शोध कार्य लिखे हैं। उन्होंने अनेक विषयों पर अपनी किताबें लिखी है। साथी उन्होंने कई समाचार पत्रों का प्रकाशन और उन में लेखन भी किया था।

बाबा साहब अंबेडकर की पत्नी रमाबाई मैं बाबा साहब की शिक्षा में कंधे से कंधा मिलाकर मदद की। उन्होंने कभी सोने चांदी की आशा नहीं की। जीवन भर अपने पति बाबा साहब अंबेडकर जी को साथ दिया। बाबा साहब के घर में ना होते हुए भी अपना परिवार चलाया। अपने बच्चों का ख्याल रखा। आपने गरीबी के बारे में कभी भी कोई भी शिकायत उन्होंने नहीं की।

भारत 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्र हुआ। भारत की आजादी के बाद अंग्रेज भारत छोड़कर चले गए। इसके बाद हमारा देश चलाने के लिए संविधान की जरूरत थी। इसलिए हमारे देश का संविधान तैयार करने के लिए संविधान समिति नियुक्त कर दी थी। इस संविधान समिति के अध्यक्ष थे डॉ. राजेंद्र प्रसाद। और उसमें एक मसूदा समिति थी उसके अध्यक्ष थे डॉक्टर बाबासाहेब अंबेडकर।

बाबा साहब अंबेडकर ने कई देशों की घटनाओं का अध्ययन किया। उनमें से अच्छी-अच्छी बातें निकाल कर सहयोगियों की मदद से संविधान का मसौदा तैयार किया। उन्होंने संविधान तैयार करने के लिए 2 साल, 11 महीने और 18 दिन तक कड़ी मेहनत की। इस पूरे मसौदे पर संविधान सभा में बड़ी बहस हुई थी। इससे पूरी चर्चा होने के बाद संविधान का आखिरी मसौदा तैयार हो गया। और उसके बाद 26 नवंबर, 1949 को संविधान सभा द्वारा संविधान को अपनाया गया।

अपने देश में 26 जनवरी 1985 इस संविधान लागू कर दिया। और अपने देश में इस संविधान से अपना कार्य करना शुरू कर दिया।

आपने देश का संविधान लिखने में डॉ बाबासाहेब अंबेडकर का बड़ा योगदान था, इसलिये उन्हें संविधान निर्माता माना जाता है। डॉ बाबासाहेब अंबेडकरने अपने देश के लिए बहुमूल्य योगदान दिया है।

डॉ बाबासाहेब अंबेडकर ने अपने जीवन में पढ़ाई को बहुत ज्यादा महत्व दिया। उनके कारण को अपने देश में और पूरे विश्व में भी बुद्धिमान माने जाते हैं। ऐसे महान व्यक्ति का देहांत 6 दिसंबर 1956 को हो गया। इसलिए 6 दिसंबर डॉक्टर बाबासाहेब आंबेडकर महापरिनिर्वाण दिन कहा जाता है।

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